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विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक बौद्ध धर्म भी है, गौतम बुद्ध  का जन्म वैदिक सनातन वर्णाश्रम(हिन्दु)धर्मावलम्वि क्षत्रिय कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के घर मे हुआ था। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बन गए। आज पुरे विश्व में करीब 180 करोड़ से भी ज्यदा बौद्ध धर्म के अनुयायी है और यह बौद्ध जनसंख्या विश्व की आबादी का 25% हिस्सा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार चीन में 11% (122करोड़ ) आबादी बौद्ध है। चीन, जापान, व्हिएतनाम, थायलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, श्रिलंका, उत्तर कोरीया, दक्षिण कोरीया, म्यानमार, तैवान, भूतान, हाँग काँग, तिबेट, मकाउ, सिंगापूर ये सब 13 बौद्ध देश है। भारत, मलेशिया, नेपाल, इंडोनेशिया, अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई आदी देशों में भी बौद्धधर्म का अनुयायी की संख्या अधिक है।

अहिंसा के बारे में बुद्ध के विचार, जिन्हें अपनाने से सुख और शांति मिलती है

रास्ता = भूतकाल में मत उलझो, भविष्य के सपने मत देखो वर्तमान पर ध्यान दो, यही खुसी का रास्ता है

किसी को न मारें = जैसे मैं हूँ, वैसे ही वे हैं, और ‘जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें

दुःख = जहां मन हिंसा से मुड़ता है, वहां दुःख अवश्य ही शांत हो जाता है।

स्वास्थ्य = स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा सम्बन्ध है

क्रोध = आपको क्रोध की सजा नहीं मिलती है बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है

संदेह शक = संदेह और शक की आदत से भयानक और कुछ नहीं होता| संदेह और शक लोगो को आपस में दूर करता है मित्रता तुड़वाता है

लड़ाईया = हजारो लड़ाईया जितने से अच्छा आप अपने ऊपर विजय प्राप्त करो| फिर हमेशा जीत आपकी ही होगी

वध न करें = अपनी प्राण-रक्षा के लिए भी जान-बूझकर किसी प्राणी का वध न करें।

सत्य नहीं छिपता = दुनिया में तीन चीजो को कभी नहीं छिपा सकते – सूर्य चन्द्र और सच

सोच = हम अपनी सोच से ही निर्मित होते हैं, जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं। जब मन शुद्ध होता है तो खुशियाँ परछाई की तरह आपके साथ चलती हैं

इच्छा = मनुष्य यह विचार किया करता है कि मुझे जीने की इच्छा है मरने की नहीं, सुख की इच्छा है दुख की नहीं। यदि मैं अपनी ही तरह सुख की इच्छा करने वाले प्राणी को मार डालूं तो क्या यह बात उसे अच्छी लगेगी? इसलिए मनुष्य को प्राणीघात से स्वयं तो विरत हो ही जाना चाहिए। उसे दूसरों को भी हिंसा से विरत कराने का प्रयत्न करना चाहिए।

मोक्ष = अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें। दूसरों पर निर्भर ना रहे।

खुशियाँ = जिस तरह एक मोमबत्ती की लौ से हजारों मोमबत्तियों को जलाया जा सकता है फिर भी उसकी रौशनी काम नहीं होती उसी तरह एक दूसरे से खुशियाँ बांटने से कभी खुशियाँ कम नहीं होतीं

नुकसान = किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से ज्यादा डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुकसान पहुंचा सकता है

अवैरी = वैरियों के प्रति वैररहित होकर, अहा! हम कैसा आनंदमय जीवन बिता रहे हैं, वैरी मनुष्यों के बीच अवैरी होकर विहार कर रहे हैं!

परिश्रम = जिस तरह एक मोमबत्ती बिना आग के खुद नहीं जल सकती उसी तरह एक इंसान बिना आध्यात्मिक जीवन के जीवित नहीं रह सकता

रोग = पहले तीन ही रोग थे- इच्छा, क्षुधा और बुढ़ापा। पशु हिंसा के बढ़ते-बढ़ते वे अठ्‍ठान्यवे हो गए। ये याजक, ये पुरोहित, निर्दोष पशुओं का वध कराते हैं, धर्म का ध्वंस करते हैं। यज्ञ के नाम पर की गई यह पशु-हिंसा निश्चय ही निंदित और नीच कर्म है। प्राचीन पंडितों ने ऐसे याजकों की निंदा की है।

ईर्ष्या = आपके पास जो कुछ भी है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये। जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।

मन = सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य हो सकते हैं?

लक्ष्य = मंजिल या लक्ष्य को पाने से अच्छा है यात्रा अच्छी हो| हजारो शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाता हो

प्यार = आप पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को खोज लें जो आपको आपसे ज्यादा प्यार करता हो, आप पाएंगे कि जितना प्यार आप खुद से कर सकते हैं उतना कोई आपसे नहीं कर सकता

बुराई = बुराई से बुराई को कभी ख़त्म नहीं किया जा सकता| बुराई हमेशा प्रेम को समाप्त कराती है

सत्य की राह = सत्य पर चलने वाला व्यक्ति सिर्फ दो ही गलतिया कर सकता है या तो पूरा रास्ता तय नहीं करता या फिर शुरुवात ही नहीं करता

क्रोध = क्रोधित होने का मतलब है जलाता हुआ कोयला किसी दूसरे पर फेंकना| जो सबसे पहले आप को जी जलाता है

खुशिया = एक जलते हुए दीपक से हजारो दीपको को जला सकते हो फिर भी दीपक की रोशनी काम नहीं होती| उसी तरह खुशिया बांटने से बढाती है काम नहीं होती

हम अपने भाग्य के मालिक खुद हैं ; हम अकेले पैदा होते हैं और अकेले मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इसलिए अपना रास्ता स्वंय बनाएं.

अगर आपमें दया भाव नहीं है तो आपका जीवन अधूरा है.

एक क्षण एक दिन बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता है और एक जीवन पूरे विश्व को बदल सकता है.

जो व्यक्ति जागा हुआ है उसके लिए रात लम्बी है, जो थका है उसके लिए दूरी लम्बी है पर जो मुर्ख सच्चा धर्म नहीं जनता उसके लिए यह जीवन ही लम्बा है.

यदि किसी समस्या का समाधान हो सकता है तो चिंता क्यों करें? और यदि समस्या का समाधान नहीं हो  सकता तो चिंता करना आपको कोई लाभ नहीं देगा.

= गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।