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पूजा  के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,पूजा  के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,इष्टदेवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। यह देवी – देवताओं  के गुणों की प्रशंसा गीत है। आरती आम तौर पर एक पूजा या भजन सत्र के अंत में किया जाता है। यह पूजा समारोह के एक भाग के रूप में गाया जाता है।

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मां कात्यायनी अमोध फलदायिनी हैं । दुर्गा पूजा के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है । इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है । इनकी पूजा से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, चारों फलों की आसानी से प्राप्ति होती है । ये दानवों, असुरों और पापियों का नाश करनेवाली देवी भी कहलाती हैं । इन्होंने ही पृथ्वी लोक, पाताल लोक और स्वर्ग लोक को शुंभ-निशुंभ राक्षसों से मुक्त कराया था|

माँ कात्यायनी जी की आरती (Deity katyayani Aarti in Hindi)

जय जय अंबे जय कात्यायनी ।
जय जगमाता जग की महारानी ।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा ।
वहां वरदाती नाम पुकारा ।।

कई नाम हैं कई धाम हैं ।
यह स्थान भी तो सुखधाम है ।।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी ।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी ।।

हर जगह उत्सव होते रहते ।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।

कात्यायनी रक्षक काया की ।
ग्रंथि काटे मोह माया की ।।

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झूठे मोह से छुड़ानेवाली ।
अपना नाम जपानेवाली ।।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।
ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।

हर संकट को दूर करेगी ।
भंडारे भरपूर करेगी ।।

जो भी मां को भक्त पुकारे ।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे ।।

Deity katyayani Aarti in English 

Jai jai ambe jai Katyayani ।
Jai jag mata jag ki maharani ।।

Baijnath sthan tumhara ।
Vahan vardati naam pukara ।।

Kai naam hain kai dhaam hain ।
Yah sthan bhi to sukhdhaam hai ।।

Har mandir men jot tumhari ।
Kahin yogeshvari mahima nyari ।।

Har jagha utsav hote rahte ।
Har mandir men bhakt hain kahte ।।

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Katyayni rakshak kaya ki ।
Granthi kate moh maya ki ।।

Jhuthe moh se chhudanevali ।
Apna naam japanevali ।।

Brahaspativaar ko puja kariyo ।
Dhyaan Katyayni ka dhariyo ।।

Har sankat ko dur karegi ।
Bhandare bharpur karegi ।।

Jo bhi maa ko bhakt pukare ।
Katyayani sab kashth nivare ।।

माता के नौ रुप

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों की हम विभिन्न रूपों में उपासना करते है|

  1. शैलपुत्री इसका अर्थ- पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।
  2. ब्रह्मचारिणी इसका अर्थ- ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
  3. चंद्रघंटा इसका अर्थ- माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं।
  4. कूष्माण्डा इसका अर्थ- अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं।
  5. स्कंदमाता इसका अर्थ- स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
  6. कात्यायनी इसका अर्थ- कत गोत्र में उत्पन्न स्त्री। कात्यायन ऋषि की पत्नी। वह विधवा जो कषाय वस्त्र पहनती हो। दुर्गा की एक मूरति या रूप।
  7. कालरात्रि इसका अर्थ- दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन … नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
  8. महागौरी इसका अर्थ- माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी
  9. सिद्धिदात्री इसका अर्थ- नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ, सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहते हैं।

कैसे करें माँ कात्यायनी जी की सच्ची आरती ?

यह बात तो सब जानते ही है की संसार पंच महाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है—

  1. पृथ्वी की सुगंध—कपूर
  2. जल की मधुर धारा—घी
  3. अग्नि—दीपक की लौ
  4. वायु—लौ का हिलना
  5. आकाश—घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि

इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।

मानव शरीर से भी कर सकतें है सच्ची आरती

मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है । मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है ।

जाने कैसे ?

अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना—यही सच्ची आरती है। इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं।

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