पूजा के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,पूजा के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,इष्टदेवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। यह देवी – देवताओं के गुणों की प्रशंसा गीत है। आरती आम तौर पर एक पूजा या भजन सत्र के अंत में किया जाता है। यह पूजा समारोह के एक भाग के रूप में गाया जाता है। आज हम आपके साथ देवी शैलपुत्री जी की आरती हिन्दी तथा इंग्लिश मे साझा कर रहे है आप अपने सुविधा अनुसार कोई भी माध्यम चुन सकतें है|
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पहले दिन देवी शैलपुत्री जी की पूजा की जाती है । पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया है । इन भगवती का वाहन बैल है । इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है । पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं । पूर्वजन्म की तरह इस जन्म में भी भगवान शंकर की अर्धांगिनी बनीं । ये देवी वन के सभी जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं । आज हम आपके साथ देवी शैलपुत्री जी की आरती हिन्दी तथा इंग्लिश मे साझा कर रहे है आप अपने सुविधा अनुसार कोई भी माध्यम चुन सकतें है|
देवी शैलपुत्री जी की आरती (Deity Shailputri Aarti in Hindi)
शैलपुत्री मां बैल असवार ।
करें देवता जय जयकार ।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी ।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी ।।
पार्वती तू उमा कहलावे ।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे ।।
ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू ।
दया करे धनवान करे तू ।।
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सोमवार को शिव संग प्यारी ।
आरती तेरी जिसने उतारी ।।
उसकी सगरी आस बुझा दो ।
सगरे दुख तकलीफ मिटा दो ।।
घी का सुंदर दीप जला के ।
गोला गरी का भोग लगा के ।।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं ।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं ।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे ।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे ।।
मनोकामना पूर्ण कर दो ।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो ।।
Deity Shailputri Aarti in English
Shailputri maa bail aswaar ।
Karen Devta jai jaikaar ।।
Shiv Shanker kee priy Bhavani ।
Teri mahima kisi ne na jani ।।
Paarwati tu Uma kahlave ।
Jo tujhe simre so sukh pave ।।
Riddhi Siddhi parvaan kare tu ।
Dya kare dhanvan kare tu ।।
Somvaar ko Shiv sang pyari ।
Aarti teri jisne utari ।।
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Uski sagri aas bujha do ।
Sagre dukh takleef mita do ।।
Ghee ka sunder deep jala ke ।
Gola gari ka bhog laga ke ।।
Shraddha bhav se mantra gayen ।
Prem sahit phir shish jhukayen ।।
Jai giriraaj kishori ambe ।
Shiv mukh Chandra chakori ambe ।।
Manokamna purn kar do ।
Bhakt sada sukh sampatti bhar do ।।
माता के नौ रुप
नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों की हम विभिन्न रूपों में उपासना करते है|
- शैलपुत्री – इसका अर्थ- पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।
- ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
- चंद्रघंटा – इसका अर्थ- माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं।
- कूष्माण्डा – इसका अर्थ- अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं।
- स्कंदमाता – इसका अर्थ- स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
- कात्यायनी – इसका अर्थ- कत गोत्र में उत्पन्न स्त्री। कात्यायन ऋषि की पत्नी। वह विधवा जो कषाय वस्त्र पहनती हो। दुर्गा की एक मूरति या रूप।
- कालरात्रि – इसका अर्थ- दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन … नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
- महागौरी – इसका अर्थ- माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी
- सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ, सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहते हैं।
कैसे करें देवी शैलपुत्री की सच्ची आरती ?
यह बात तो सब जानते ही है की संसार पंच महाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है—
- पृथ्वी की सुगंध—कपूर
- जल की मधुर धारा—घी
- अग्नि—दीपक की लौ
- वायु—लौ का हिलना
- आकाश—घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि
इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।
मानव शरीर से भी कर सकतें है सच्ची आरती
मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है । मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है ।
जाने कैसे ?
अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना—यही सच्ची आरती है। इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं।