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पूजा  के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,पूजा  के अंत में हम सभी देवी – देवताओं की आरती करते हैं। आरती पूजन के अन्त में हम इष्टदेवी ,इष्टदेवता की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है। यह देवी – देवताओं  के गुणों की प्रशंसा गीत है। आरती आम तौर पर एक पूजा या भजन सत्र के अंत में किया जाता है। यह पूजा समारोह के एक भाग के रूप में गाया जाता है।

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स्कंद माता यह माता दो हाथों में कमल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्म स्वरुप सनत्कुमार को थामे हुए होती हैं । इनका वाहन सिंह है । ये विधावाहिनी दुर्गा भी कहलाती हैं । इनकी पूजा में मिट्टी की छोटी-छोटी 6 मूर्तियां सजायी जाती हैं । आज हम आपके साथ स्कंद माता जी की आरती हिन्दी तथा इंग्लिश मे साझा कर रहे है आप अपने सुविधा अनुसार कोई भी माध्यम चुन सकतें है|

माँ स्कंद जी की आरती (Deity Skand Aarti in Hindi)

जय तेरी हो स्कंद माता ।
पांचवां नाम तुम्हारा आता ।।

सबके मन की जानन हारी ।
जग जननी सबकी महतारी ।।

तेरी जोत जलाता रहूं मैं ।
हरदम तुझे ध्याता रहूं मैं ।।

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कई नामों से तुझे पुकारा ।
मुझे एक है तेरा सहारा ।।

कहीं पहाड़ों पर है डेरा ।
कई शहरों में तेरा बसेरा ।।

हर मंदिर में तेरे नजारे ।
गुण गाएं तेरे भक्त प्यारे ।।

भक्ति अपनी मुझे दिला दो ।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो ।।

इंद्र आदि देवता मिल सारे ।
करें पुकार तुम्हारे द्वारे ।।

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए ।
तू ही खंडा हाथ उठाए ।।

दासों को सदा बचाने आयी ।
भक्त की आस पुजाने आयी ।।

Deity Skand Aarti in English 

Jai teri ho Skand mata ।
Panchva naam tumhara aata ।।

Sabke man ki janan hari ।
Jag janni sabki mahtari ।।

Teri jot jlata rahun main ।
Hardum tujhe dhyata rahun main ।।

Kai naam se tujhe pukara ।
Mujhe ek hai tera sahara ।।

Kahin pahadon par hai dera ।
Kai shahron men tera basera ।।

Har mandir men tere najare ।
Gun gayen tere bhakt pyare ।।

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Bhakti apni mujhe dila do ।
Shakti meri bigdi bana do ।।

Indra aadi devtaa mil sare ।
Karen pukaar tumhare duware ।।

Dusht daitya jab chad kar aayen ।
Tu hi khanda haath uthaye ।।

Daason ko sada bachane aayi ।
Bhakt ki aas pujane aayi ।।

माता के नौ रुप

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों की हम विभिन्न रूपों में उपासना करते है|

  1. शैलपुत्री – इसका अर्थ- पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।
  2. ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
  3. चंद्रघंटा – इसका अर्थ- माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं।
  4. कूष्माण्डा – इसका अर्थ- अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं।
  5. स्कंदमाता – इसका अर्थ- स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
  6. कात्यायनी – इसका अर्थ- कत गोत्र में उत्पन्न स्त्री। कात्यायन ऋषि की पत्नी। वह विधवा जो कषाय वस्त्र पहनती हो। दुर्गा की एक मूरति या रूप।
  7. कालरात्रि – इसका अर्थ- दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन … नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
  8. महागौरी – इसका अर्थ- माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी
  9. सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ, सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहते हैं।

कैसे करें माँ स्कंद जी की सच्ची आरती ?

यह बात तो सब जानते ही है की संसार पंच महाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है—

  1. पृथ्वी की सुगंध—कपूर
  2. जल की मधुर धारा—घी
  3. अग्नि—दीपक की लौ
  4. वायु—लौ का हिलना
  5. आकाश—घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि

इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।

मानव शरीर से भी कर सकतें है सच्ची आरती

मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है । मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है ।

जाने कैसे ?

अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना—यही सच्ची आरती है। इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं।

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